संस्था का काम

श्रमिक समर्थन के लिए एक नई दिशा

भारत की विकास गाथा में अपने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, प्रवासी श्रमिक आजादी के 77 वर्ष बाद भी अपने हकों से वंचित रहकर अन्यायपूर्ण मजदूरी, असुरक्षित कार्य परिस्थितियों और कानूनी सुरक्षा और सामाजिक सेवाओं के आभाव का सामना करते हैं।

भारत में श्रम बल का 92 प्रतिशत तक हिस्सा असंगठित श्रमिकों का है (NCEUS 2004), ऐसे में मौसमी प्रवासन असंगठित क्षेत्र में श्रम रोजगार का एक प्रमुख रूप बनकर उभरा है। श्रमिक अक्सर अपने पूरे परिवार के साथ कम विकसित क्षेत्रों से विकसित क्षेत्रों में अल्पकालिक रोजगार के लिए प्रवास करते हैं, जिसे प्रसिद्ध शोधकर्ता जैन ब्रेमेन ने ‘फुटलूज श्रम’ (1996) कहा है। मौसमी प्रवासी श्रमिक अक्सर कम वेतन वाले, खतरनाक कार्यों में प्रमुख होते हैं और स्थायी श्रमिकों को मिलने वाली सुरक्षा का भी अभाव होता है। उनके योगदान को कम आंका जाता है, और वे जाति, वर्ग, और लिंग के आधार पर भेदभाव का सामना करते हैं। दलित और आदिवासी श्रमिक बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम के असमान जोखिम का सामना करते हैं, जबकि महिला श्रमिक वेतन असमानता, असुरक्षित कार्य स्थितियों, और अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य के अतिरिक्त बोझ का सामना करती हैं। असंगठित प्रवासी श्रमिक अक्सर स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच की कमी का सामना करते हैं। कानूनी सुरक्षा अपर्याप्त है, और प्रवासी श्रमिकों से जुड़े कई विवाद उनके असंगठित रोजगार और दस्तावेज़ों की कमी के कारण श्रम न्यायालयों तक नहीं पहुंच पाते। भारत में मौसमी श्रम प्रवासन पर विश्वसनीय आधिकारिक आंकड़ों के आभाव से यह अस्थिर स्थिति छुपी रहती है। परिणामस्वरूप, नीतियां अक्सर इन श्रमिकों की जरूरतों को पूरा करने में विफल रहती हैं, जिससे वे शोषण के शिकार बनते हैं और मौलिक अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। पारंपरिक श्रमिक संघ इन श्रमिकों के काम की बिखरी हुई प्रकृति और मौसमी रोजगार के पैटर्न के कारण इन्हें संगठित करने में काफी हद तक विफल रहे हैं। COVID-19 महामारी ने उनकी दुर्दशा को स्पष्ट रूप से उजागर किया, जिससे प्रणालीगत सुधार की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित किया गया।

कार्य की रणनीति

भारत में प्रवासी श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली जटिल चुनौतियों की गहरी समझ के आधार पर, CLRA ने एक नवीन हस्तक्षेप ढांचा विकसित किया है, जिसने पिछले दशक में संगठन को महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करने में मदद की है। यह दृष्टिकोण पूरे प्रवासन चक्र पर केंद्रित है, जो श्रमिकों की जरूरतों को उनके स्रोत और गंतव्य दोनों स्थानों पर संबोधित करता है। CLRA की रणनीति श्रमिक शोषण को बनाए रखने वाली सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और प्रणालीगत मुद्दों को समझने पर आधारित है, और यह पहचानी गई प्रवासन धाराओं के साथ श्रमिकों की निरंतर गतिशीलता, श्रम ठेकेदारों की महत्वपूर्ण भूमिका, और मौजूदा उत्पादन और श्रम प्रक्रियाओं की प्रकृति को भी ध्यान में रखती है। संक्षेप में, CLRA का ढांचा निम्नलिखित चार स्तंभों पर आधारित है:


श्रमिक शक्ति का निर्माण

श्रमिकों और उनके संगठनों का सशक्तिकरण CLRA के कार्य का केन्द्रीय हिस्सा है। श्रमिक संगठन श्रमिकों के अधिकारों की वकालत करने और कार्य स्थितियों में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। CLRA प्रवासी और असंगठित श्रमिकों को मजबूत, आत्मनिर्भर समूहों में संगठित करने में सहायता करता है, श्रमिक नेताओं को प्रोत्साहित करता है, और श्रमिकों को उनके अधिकारों और हक़ों के बारे में शिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण आयोजित करता है। यह श्रमिकों को संगठित करने में श्रम ठेकेदारों की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रख कर एक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाता है। एक एकीकृत मोर्चा बनाकर, यह श्रमिकों को बेहतर मजदूरी और कार्य स्थितियों पर बातचीत करने में मदद करता है और प्रणालीगत शोषण का समाधान करता है।


अनुसंधान और पैरवी

CLRA प्रवासी श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और प्रणालीगत चुनौतियों की जांच के लिए गहन अनुसंधान करता है। यह अनुसंधान CLRA के कार्य के सभी पहलुओं को सूचित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि हस्तक्षेप साक्ष्य-आधारित हों और श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविक समस्याओं का प्रभावी ढंग से समाधान करें। इसमें प्रवासन धाराओं का मानचित्रण, श्रम प्रक्रियाओं का अध्ययन, और नीति प्रभावों का मूल्यांकन शामिल है। साक्ष्य उत्पन्न करना CLRA की रणनीतिक योजना और वकालत प्रयासों को सूचित करता है। अपने अनुसंधान का लाभ उठाते हुए, CLRA प्रणालीगत परिवर्तनों की वकालत करता है जो श्रमिक शोषण के मूल कारणों को संबोधित करते हैं। निरंतर नीति पैरवी के माध्यम से, CLRA श्रम कानूनों और नीतियों को प्रवासी श्रमिकों की जरूरतों और अधिकारों को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिए प्रभावित करने का प्रयास करता है।


समग्र समर्थन सेवाएँ

2010 से, CLRA ने प्रवासी श्रमिकों को बंधुआ मजदूरी, मजदूरी भुगतान, हिंसा और भेदभाव के मामलों में कानूनी प्रतिनिधित्व और समर्थन प्रदान किया है। कानूनी सहायता प्रदान करके, CLRA यह सुनिश्चित करता है कि श्रमिकों को न्याय तक पहुंच हो और उनके मौलिक मानवाधिकार सुरक्षित हों। CLRA के कानूनी हस्तक्षेपों ने बंधुआ मजदूरों को बचाने और बकाया मजदूरी प्राप्त करने में मदद की है, जिससे शोषित श्रमिकों को महत्वपूर्ण राहत मिली है। CLRA शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा सहित आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच को भी सुगम बनाता है। संगठन यह भी सुनिश्चित करता है कि प्रवासी परिवार अपने स्रोत और गंतव्य दोनों स्थानों पर हकों और सेवाओं तक पहुंच सकें, जिससे प्रवासन के कारण उत्पन्न विघटन को कम किया जा सके।


नेटवर्किंग और सहयोग

CLRA पूरी तरह से मानता है कि एकल संगठन के लिए परिवर्तन लाना संभव नहीं है। CLRA नियमित रूप से सरकारी एजेंसियों, एनजीओ, श्रमिक संगठनों और अन्य हितधारकों के साथ सहयोग करता है ताकि सार्थक कानूनी और नीतिगत सुधारों के लिए प्रयास किया जा सके। इसने गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में आदिवासी प्रवासी श्रमिकों के साथ काम करने वाले जमीनी संगठनों के एक नेटवर्क, पश्चिम भारत मजदूर अधिकार मंच के गठन में अग्रणी भूमिका निभाई है।

कार्य के क्षेत्र

2010 से CLRA ने अनेक राज्यों और क्षेत्रों में श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए काम किया है। CLRA ने कृषि, ईंट उत्पादन, निर्माण, और कपास टेक्सटाईल जैसे क्षेत्रों पर अपने हस्तक्षेपों को केंद्रित किया है। 2023 में संगठन ने गुजरात में कचरा प्रबंधन और स्वच्छता श्रमिकों के साथ दीर्घकालिक अनुसंधान और संगठनात्मक कार्य शुरू करने का निर्णय लिया। हाल के वर्षों में, CLRA ने खनन, चमड़ा, और हीरा प्रसंस्करण जैसे उद्योगों की भी जांच की है।

A Bitter Struggle: Migrant Sugarcane Harvesters’ Movement for Justice and Fair Wages

कृषि

दक्षिण गुजरात और पश्चिमी महाराष्ट्र में गन्ना कटाई श्रमिक कृषि श्रम बल के सबसे हाशिए पर और शोषित तबकों में से हैं। ये श्रमिक मुख्य रूप से महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के आदिवासी जिलों के मौसमी प्रवासी होते हैं। स्थानीय कृषि श्रमिकों की प्रचुरता के बावजूद, प्रवासी श्रमिकों को प्राथमिकता उनकी आर्थिक-सामाजिक कमजोरी व मजबूरी और चीनी मिलों को होने वाले आर्थिक लाभ के कारण दी जाती है।

गुजरात में भागिया श्रमिक मौसमी प्रवासी कृषि मजदूर होते हैं, जो मुख्य रूप से पश्चिमी भारत के आदिवासी क्षेत्रों से आते हैं, विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा क्षेत्रों में फैले भील आदिवासी बेल्ट से। ये श्रमिक कृषि मौसमों के दौरान गुजरात के उत्तरी और सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्रों में प्रवास करते हैं, जहाँ वे बड़े भूमिधारकों के साथ "भाग-खेती" के नाम से जाने जाने वाले मौखिक समझौते करते हैं। आमतौर पर, पूरे पूरे परिवार प्रवास करते हैं, जिसमें पति और पत्नी दोनों खेतों में काम करते हैं, जबकि बड़े बच्चे घरेलू कामों में मदद करते हैं और छोटे भाई-बहन की देखभाल करते हैं। हालांकि, इन श्रमिकों की प्रवासी स्थिति अक्सर उन्हें और अधिक हाशिए पर ले आती है, जिससे उनकी शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।

दक्षिण गुजरात में स्थित हलपति समुदाय भूमिहीन कृषि मजदूरों का समूह है, जो ऐतिहासिक रूप से गंभीर सामाजिक-आर्थिक शोषण का सामना करता रहा है। हलपति विभिन्न कृषि गतिविधियों में लगे रहते हैं, जैसे कि जुताई, बुवाई, निराई, और कटाई, और अक्सर कठोर परिस्थितियों में न्यूनतम मजदूरी से भी कम पर काम करते हैं। पारंपरिक हाली प्रणाली, जो बंधुआ मजदूरी का एक रूप है, पूरे परिवारों को भूमिधारक परिवारों से बांधती है, जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी गुलामी जारी रहती है।

ईंट भट्टे

ईंट भट्टा उद्योग शोषणकारी भर्ती, पेशगी, और पीस रेट के हिसाब से मजदूरी प्रणालियों के कारण जबरन और बंधुआ मजदूरी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। अधिकांश ईंट भट्टा श्रमिक – जो मुख्य रूप से सीमांत भूमिधारक और भूमिहीन मजदूर होते हैं – अनियंत्रित ठेकेदारों के माध्यम से भट्टों पर लाए जाते हैं। इन ठेकेदारों के माध्यम से भट्टा मालिक श्रमिकों को नकद अग्रिम (पेशगी) देते हैं, जिससे वे पूरे मौसम के लिए भट्टों से बंध जाते हैं। इस प्रकार की बंधुआ मजदूरी, न्यूनतम से कम मजदूरी, लंबे कार्य घंटे, और खराब जीवन स्थितियों के साथ श्रम कानूनों के कार्यान्वयन के आभाव के कारण ईंट भट्टा श्रमिक भारत के सबसे शोषित वर्गों में से एक हैं। ईंट उद्योग में बाल श्रम भी प्रचलित है, जिसमें बच्चे मिट्टी मिलाने, ईंटें लगाने और सामग्री परिवहन जैसी गतिविधियों में मदद करते हैं।

निर्माण

गुजरात का निर्माण क्षेत्र प्रवासी श्रमिकों पर अत्यधिक निर्भर है। निर्माण (कड़िया) मजदूरों ने गुजरात के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये श्रमिक मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, और महाराष्ट्र जैसे पड़ोसी राज्यों से आते हैं। इन्हे अक्सर श्रम ठेकेदारों द्वारा लाया जाता है, जो उन्हें उनके गृह राज्यों से भर्ती करते हैं और प्रवासन के स्रोत और गंतव्य के बीच का संबंध प्रदान करते हैं। हालांकि, इन श्रमिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें खराब जीवन और कार्य स्थितियाँ, सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक सेवाओं तक सीमित पहुंच, और सामूहिक सौदेबाजी शक्ति की कमी शामिल हैं। आवास और दैनिक आवश्यकताओं के लिए नियोक्ताओं या श्रम ठेकेदारों पर श्रमिकों की निर्भरता उनकी संवेदनशीलता को और बढ़ा देती है।

कचरा प्रबंधन

गुजरात में अनौपचारिक कचरा प्रबंधन श्रमिक, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के झाबुआ और गुजरात के दाहोद जैसे क्षेत्रों के प्रवासी आदिवासी परिवार होते हैं, गंभीर आर्थिक और सामाजिक शोषण का सामना करते हैं। अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों में घर-घर कचरा संग्रहण में लगे ये श्रमिक लंबे समय तक काम करते हैं, अपर्याप्त सुरक्षात्मक उपकरणों का उपयोग करते हैं, और अनौपचारिक अनुबंधों के तहत कम और अनियमित मजदूरी पर काम करते हैं। वे अक्सर शहर के अपर्याप्त अनौपचारिक बस्तियों में रहते हैं जहां पर्यावरणीय खतरों की संभावना बढ़ जाती है। इन श्रमिकों की जाति और आदिवासी पहचान के कारण उन्हे भेदभाव का सामना करना पड़ता है और सार्वजनिक सेवाओं और कानूनी सुरक्षा तक पहुंच सीमित रहती है। महिला श्रमिक, जो कचरा प्रबंधन में अधिक संख्या में भाग लेती हैं, अवैतनिक घरेलू और देखभाल कार्य के साथ-साथ खतरनाक कचरा छंटाई का कार्य करती हैं, अक्सर बिना बाल देखभाल सहायता के।

कपास

प्रवासी श्रमिक, जो कि भारत में कपास आपूर्ति श्रृंखला की रीढ़ होते हैं, हर चरण में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं। ये श्रमिक मुख्य रूप से राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, और ओडिशा के कम विकसित क्षेत्रों से, अधिक समृद्ध कपास उत्पादन वाले राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, और आंध्र प्रदेश में प्रवास करते हैं। कपास बीज की कटाई में बच्चे और वयस्क खतरनाक परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करते हैं, जिसमें कीटनाशकों के बड़े जोखिम का सामना करना पड़ता है। कपास की खेती के दौरान, श्रमिक कठिन कार्य जैसे बुवाई और चुनाई करते हैं, अक्सर प्रति दिन केवल 120-150 रुपयों की मजदूरी के लिए। गुजरात में जिनिंग प्रक्रिया में लगभग 80,000-90,000 श्रमिक काम करते हैं, जिनमें कई मौसमी प्रवासी राजस्थान और बिहार से होते हैं। जिनिंग मिल श्रमिक गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करते हैं, जिनमें धूल और शोर प्रदूषण शामिल हैं, और अक्सर वेतन चोरी और असुरक्षित कार्य वातावरण का सामना करते हैं।

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