परिचय

सेंटर फॉर लेबर रिसर्च एण्ड एक्शन (CLRA) भारत की विशाल असंगठित अर्थव्यवस्था में प्रवासी मजदूरों के अधिकारों की रक्षा और संवर्धन के लिए काम करता है।


2006 में स्थापित, CLRA प्रारंभ में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में अधिकार-आधारित एनजीओ प्रयास का हिस्सा था। 2010 में CLRA को अहमदाबाद, गुजरात में एक स्वतंत्र सामाजिक संस्था और ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया गया। लगभग दो दशकों तक देश के सबसे वंचित समुदायों के साथ काम करते हुए, CLRA ने समय के साथ श्रमिक शक्ति के निर्माण और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए अपनी विशिष्ट दृष्टिकोण विकसित की है। CLRA मौसमी श्रम प्रवासन करने वाले श्रमिकों के सामने आने वाली प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान करता है, जिनमें अन्यायपूर्ण मजदूरी, असुरक्षित परिस्थितियाँ, और कानूनी एवं सामाजिक सुरक्षा का आभाव शामिल हैं। श्रमिक संगठन, क्रियात्मक अनुसंधान और नीति वकालत के माध्यम से, CLRA सार्थक परिवर्तन लाने का लक्ष्य रखता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि प्रवासी श्रमिक और उनके परिवार अपने स्रोत और गंतव्य दोनों स्थानों पर गरिमा के साथ जीवन यापन और कार्य कर सकें।

दृष्टिकोण और उद्देश्य

दृष्टिकोण

सीएलआरए (CLRA) एक ऐसे भविष्य को साकार करने के लिए समर्पित है जहां हर श्रमिक को पहचाना जाए, मूल्यवान माना जाए, और जहां वह गरिमा, समानता और न्याय के साथ जीवन जी सके। यह एक ऐसे भविष्य की ओर काम करता है जहां श्रमिक अधिकारों को सार्वभौमिक रूप से संरक्षित और लागू किया जाए, और जहां राजनीतिक इच्छाशक्ति और नीतिगत दृष्टिकोण सबसे वंचित और हाशिये पर रहने वाले श्रमिकों की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी हों। सीएलआरए एक ऐसे समाज की परिकल्पना करता है जहां सशक्त श्रमिक और समुदाय उत्पीड़क प्रणालियों को चुनौती देते हैं और उन्हें बदलते हैं, आर्थिक और सामाजिक न्याय के लिए प्रणालीगत बाधाओं को समाप्त करते हैं।

उद्देश्य

सीएलआरए (CLRA) भारत की विशाल असंगठित अर्थव्यवस्था में प्रवासी मजदूरों के अधिकारों और हक़ों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। यह श्रमिक शक्ति का निर्माण करने के लिए क्षमताओं का विकास, सामुदायिक नेतृत्व का पोषण और श्रमिक संगठनों का समर्थन करने का प्रयास करता है। सीएलआरए प्रवासी मजदूरों को बंधुआ मजदूरी, मजदूरी भुगतान, हिंसा, और जाति एवं लिंग आधारित भेदभाव के मामलों में कानूनी सहायता प्रदान करता है और उन्हें आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं और सरकारी कार्यक्रमों से जोड़ता है। यह प्रवासी मजदूरों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और उनके द्वारा सामना की जाने वाली प्रणालीगत चुनौतियों का अध्ययन और दस्तावेजीकरण करता है, अन्यायों पर प्रकाश डालता है और सबसे वंचित समुदायों की आवाज़ों को प्रमुखता देता है। इसके अनुसंधान और अभ्यास से प्राप्त अंतर्दृष्टियाँ नीतिगत पैरवी के प्रयासों और बड़े पैमाने पर परिवर्तन लाने के लिए साझेदारियों को दिशा देती हैं।

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